मझदार में है कश्ती किनारा ढूँढती हूँ
हाँ मैं भी जीने का सहारा ढूँढती हूँ
कितने दिन बीत गये
देर भई उन्हें आने में
जाने कैसी कटेंगे दिन कैसे रातें
और इस बेरहम ज़माने की ये बातें
लेकिन उम्मीद का दामन न छोड़ा था न छोड़ेंगे
जीत ही पानी होगी अब तो हार का मुँह भी मोड़ेंगे
दिल कहता है बस एक ही बात
लगता ही जल्द होगी अपनी मुलाक़ात