एक साया बनके साथ रहे,
वो पल मेरे जीने का एहसास बन गये,
बचपन से थामे रहे मेरे हाथ,
मेरी खुशियों की पहचान बन गये,
कभी दोस्त बनके हाथ थामा,
कभी भाई बन के डाँटा,
गिरी जब मैं किसी राह पे,
और तूने बहाये आँसू आँखों से,
और वो आँसू मेरी आँखों में खुशियों के मोती दे गये,
वो छोटी छोटी खुशियों में
हम खिलखिलाए,
वो हक़ीक़त में रुलाये,
और ख्वाबों में हसाये,
वो बचपन के पल बातें बन गयी,
आज वही बातें यादें बन गयी
-कविता परमार
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