
मेरे जज़्बात
किसको बताऊं दिल की जाकर,
मैं तो खुद से छिप कर बैठा हूं ।
दर्द, दुखांत, उदासियों को,
मैं खुदमें लिफकर बैठा हूं ।
बस कलम से है बंधन
मेरा, तभी बेयान यह लिख कर बैठा हूं ।
किसको बताऊं दिल की जाकर,
मैं तो खुद से छिप कर बैठा हूं ।
मेरी जिंदगी की क्या बात करूँ,
यह हशर है हसीन नहीं ।
आए है बड़े शिकवे इसमें ,
यह बेरंग है रंगीन नहीं ।
यह सावन की बरसातों में,
मैं किसकी दीद कर बैठा हूं ।
किसको बताऊं दिल की जाकर,
मैं तो खुद से छिप कर बैठा हूं ।
-दिलप्रीत सिंह
कवि द्वारा सन्देश:
इस कविता में मैने उस जज़्बात की बात की है जो हर एक इंसान मै छुपा होता है और जो वह किसी से कह नहीं पाता।
nice shayari.
lovely shayari