Hindi Prem Kavita-कितने दिनों से सोचता हूँ

ढलती

कितने दिनों से सोचता हूँ की कह दूँ तुमसे
हाँ सोचता हूँ बता दूँ कितना प्यार है तुमसे
सुबह की पहली किरण से ले कर देर शाम
तुम्हारी यादों में है बस ये दिल गुमनाम
चाहे हो तपती दोपहरी या हो ठंडी रातें
मुझे बस याद आती हैं तुम्हारी ही बातें
तुम्हारा वो रुक रुक कर धीरे धीरे चलना
अपनी तारीफ सुनते हुए वो तुम्हारा बात बदलना
वो तेज़ हवा के झोंके से उड़ता हवा में तुम्हारा आँचल
क्या कहूं तुमसे बस करता कैसे मेरे दिल को घायल
रोज़ मिला करो मुझसे करूँगा मैं इंतजार
अब तुम्हारे बिना है मेरा जीना मरना दुशवार

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