
रात की खुमारी
मूक अँधेरी रात में
किसने छेड़ी बांसुरी की विरह तान
कसमसाती हैं कलियाँ
सनसनाते हैं कुछ गुमसुम अरमान
बहती चपल बयार
दिल का दुखड़ा कोई गुनगुनाती है
साजन की याद में
तड़पती विरहन कोई कुनमुनाती है
चाँद है बरसाता
नभमंडल से स्वेत अनुरागी कण
धरा चूमती जिनको
रसीले अधरों से हर-पल हर-क्षण
अप्सरा करती श्रृंगार
थामकर हाथों में अलौकिक दर्पण
झिलमिल तारे झूमकर
करते शुभ बेला में यौवन अर्पण
पारदर्शी हिम शिखर
आईनेदार दरख्तों पर खड़ी है
सफ़ेद आँचल तले
उजली हिरे मोतियों से जड़ी है
मौन अमलतास की
कोमल पत्तियाँ देखो चुलबुलाती हैं
ओस की रेशमी बूंदें
चांदनी की फुहार में कुलबुलाती हैं
भोर अभी आना मत
मनभावन चांदनी अभी कुँवारी है
जवां है इक मधुशाला
बावली रात की अजीब खुमारी है
-किशन नेगी ‘एकांत’
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