अनदेखा अनजाना

ख्वाबों में सजा ख्वाब आज हकीकत हो गया,
दिल में था जो हमनशीं सामने आ गया,
कुछ बातें वो कहने लगा,
कुछ बातें मैं सुनने लगी,
हर बात उसकी अच्छी लगने लगी,
थी जो अधूरी दास्तां मेरी ज़िंदगी की
वो अनकही सी दास्तां आज पूरी सी लगने लगी,
प्यार् भरी नज़रो से वो देखने लगा,
पलकें झुकाये हुये मैं शर्माने लगी,
दबी हुई थी जो खुशी मुझमें कहीं वो बाहर आने लगी,
छिपे हुये मेरे जज़बात से भरे दिल को उडान मिलने लगी,
ख्वाबों में देखा जिसे सामने उसको पा लिया,
देख उसे दिल फिर जी गया,
कविता जो रुक गयी थी कलम में कहीं,
आज वही कलम किताबों पे उतरने लगी..
-कविता परमार
nice.god bls u.