
ए दोस्त जब जाना ही था
ऐ दोस्त जब जाना ही था,
तो पलकों के आँसू बन कर क्यों रह गये?
हर पल हम तुझे ही सोचते रहे,
दुआ में सिर्फ तेरा ही नाम लेते रहे,
दुआ कबूल करके खुदा भी प्यार से कहते गये,
कि ‘वो सब तो आगे चले गये,
फिर तुम क्यों यूँ ही भटकते रह गये,
ऐ दोस्त जब जाना ही था,
तो दिल की आश बन कर क्यों रह गये?
तुझे पाने की ख्वाहिश में हम खुद को भूल गये,
तुझसे बिछड़ने के गम में हम जीना ही भूल गये,
आज खुदसे इतने रुठे कि,
खुदा से मौत की भीख मांग बैठे
पता नहीं था मरने की होगी इतना तमन्ना
न जाने क्यों आज तक यूँ ही जीते रह गये,
ऐ दोस्त जब जाना ही था,
तो दु:ख में मेरा साथ छोड़ तुम कहाँ गये?
हम बेवक़ूफ़ हर दिन ये सोचते रहे कि,
कल मेरे दोस्त से बाते होंगी,
और दुनिया की हर खुशी मेरे पास होगी,
पर ना जाने अब वो दिन सिर्फ
सपनों में दिल की आशा बन कर रह गये,
ऐ दोस्त जब जाना ही था
तो मेरी सांसे बन कर क्यों रह गये?
ऐ दोस्त जब जाना ही था
तो मुझे जिंदा छोड़ कर क्यों चले गये?
-राझ
i really like it bcoz aapne apne emotion bataye…
i miss you ashu
very touchy
The best poem i have ever heard. Really heart touching! Makes me cry whenever i read it.
really heart-touching.
heart touching