
क्यों इतना दर्द सहना पड़ता है?
क्यों रास्ते पर चलो तो कोई छेड़ देता है?
घर पर बैठो तो पति हाथ मरोड़ देता है,
किस से बताऊँ मैं अपना दर्द,
अपने तो सपने से लगते है,
कभी हाथ उठाते है,
कभी शब्दों से ही मार देते है,
क्यों इतना दर्द सहना पड़ता है?
देखा था मैने भी एक सपना,
बसा बसाया घर था मेरा अपना,
प्यार के अलावा और कुछ ना था,
ना दुख ना दर्द और ना ही आंसू थे,
खुशियों से भरा मेरा संसार क्यों बिखेर दिया उन ज़ालिमों ने?
क्यों झूठे वादे किये तूने?
क्यों झूठे सपने दिखाये तूने?
क्यों झूठी कसमे खाई तूने?
जब छोड़ के ही जाना था मुझे
तो अपना बनाया ही क्यों तूने?
कोई आए और ले जाये मुझे,
खुल के जीना चाहती हूँ मैं,
आसमान में उड़ना चाहती हूँ मैं,
लहरों में तैरना चाहती हूँ मैं,
सपनों को उड़ान देना चाहती हूँ मैं,
इंसान हूँ, इंसान की ज़िंदगी जीना चाहती हूँ मैं
क्यों इतना दर्द सहना पड़ता है?
क्यों अपनी इच्छाओं को मारना पड़ता है?
क्यों कोई मेरी परवाह नहीं करता है?
हर कोई अपनी बात मनवाता है,
मेरी बात कोई क्यों नहीं सुनता है?
क्यों इतना दर्द सहना पड़ता है?
-कविता परमार
Thank u …..
bahut pyra likha h.