
हवा के झोंके
मैंने सांस ली अपनी छत से…एक झोंके से वो उड़ चली
तू थी कहीं मीलों दूर अपनी छत पे…तेरी भी सांसें उड़ चली
मैंने सोचा कि मिलना तो ना था हमारे मुक़ददर में लिखा
मगर….
कहीं ना कहीं वह हवाएं जाती होंगी
जहां हमारे सांसें टकराती होंगी…
जो कुछ हम कह न सके कभी
वह मिलके अपनी दास्तान सुनाती होंगी ।
–आयुष पांडे