छल मत कर छल मत कर
छल मत कर सब जान कर तू
बनी,बनाई बात तू बिगाड़ मत तू
रोता है मन मेरा ये जान कर कि
अच्छी-खासी रिश्ते को बिगाड़ा है अभी
था मैं अकेला जब तू थी नही
तूने ही धड़काया दिल जब तू थी मिली
है कोई बात तो कह दे ना साफ
दूर कर गिले शिकवे और कर दे ना माफ़
तेरे आँखों से मुझे लगता है यही
करती है तू प्यार मुझे उतना ही अभी
इतना गुस्सा ठीक नही मान भी जाओ प्यारी
तेरे गुस्से से मैं मर जाऊ वारी वारी
जो भी बात थी तुझे कहना था मुझसे
नही डालती तू रंग में भंग और न होता मैं दंग तुझसे
करता हूँ मैं प्यार तुझे सागर से भी गहरा
उठता है दिल में मेरे बवंडर,लहरो का घेरा
सारी गलती खुद ही माना, अब क्या करु बोल
तेरी गलती माफ़ किया, अब तो कुछ तो बोल
मान भी जाओ रानी अब मत कर ज्यादा देर
नही तो भूल जाऊंगा जल्द ही देर सवेर
मत रख तू मौन व्रत और बन पहले जैसी
रख मुख पर मुस्कान और बन फिर से वैसी
अब ज्यादा न कर देर तू फिर से
नही तो रूठ जाऊंगा मैं तुझसे
है तू भोली,नादान और मासूम अभी भी
चेहरे पर दिखता है तेरा प्यार अभी भी
नही आता है तुझे कहना तो कोई बात नही
मत कर प्यार मुझसे पर कर बात ही सही
डर लगता है मुझे तेरे समक्ष कहना
कि रूठ न तू मुझसे नही तो हो जायेगा दूवर जीना
बस कर यार अब कर भी ले बात
समकक्षी हूँ तेरा नही तो तड़पूंगा प्रत्येक वार
चल जीत गयी तू,मान ली मैंने हार
बस कर अब बस कर अब कर भी ले मुझसे बात
विशेष मित्र के लिए समर्पित
ये कविता उन युवक युवतियों के लिए है जो किसी रिश्ते में बन्धने के बाद किसी कारण और गलत फ़हमी से अलग हो जाते है ! ये कविता उनके रिश्ते को सुधारने और उन्हें जोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने का काम अवश्य करेगी। कृपया कविता का मर्म समझने की कोशिश करे और खुद गलती मान कर अपने रिश्ते की डोर में गांठ न आने दे
-सारांश सागर