ढलती हुई शाम में आज भी उनका इंतज़ार है
थक के ये आँखें बोझिल होने लगी हैं फिर भी उनका इंतज़ार है
सोच के ये दिल मुस्कुरा देता है की नहीँ हैं
बेवफा वो। कम से कम जीने का सहारा ख्वाबों में तो दिया करती हैं
जब भी ख्वाबों में मुलाकात होती हैं
वो हमेशा मिलूंगी वादा करके सुबह कहीं चली जाती हैं
और सुबह फिर से उनका इंतेजार किया करता हूँ
समय तो रेत की तरह हाथों से फिसल रहा है
कई बरसाते आई और चली गयीं पर कोई बारिस की बूँद मुझे भिगो न पायी
ठण्ड की सिहरन तो बहुत लगी पर उस सिहरन में तेरी गर्मी का एहसास न था
हवा का झोंका जब भी मुझसे टकराया तेरी यादो की खुश्बू को लाया
सावन,सर्द हवाएं,सुबह की किरन,ओस की बूँद,चाँदनी सब से तेरी बातें किया करता हूँ
मेरी साँसें आज साथ छोड़ती सी लग रहीँ हैं
पर बन्द होती आँखों को आज भी तेरा इंतज़ार है
की सपना देख लूँ आज की तू हकीकत में आ गयी है
आज फिर से गले लगाया है
और सो गया हूँ मैं तुझे दिल में बसा के कभी ख़त्म न होने वाले सपने की तरह
की अब ये इंतज़ार साँसों के साथ खत्म होता सा लग रहा है
~ गौरव
Nice
Sach me apne kaphi khubsurati se apne alphajo ko shabdo me piroya h. I like it.
thanks
Fab