दर्द दिए कुछ ज़माने ने हर लम्हा कुछ यूँ बीत गया
इसी तरह हुई शुरआत कुछ मैं शायरी करना सीख गया
बढ़ा कुछ आगे तब झूठे दोस्तों में समय बीत गया
कुछ ऐसे ही हुई शुरुआत यारों मैं शायरी करना सीख गया
फिर कुछ झूठे रिश्तो में मेरे भोलेपन को वो जीत गया
बढ़ा दर्द कुछ इस कदर कि मैं शायरी करना सीख गया
रूह मेरी गम में डूबी थी अब हर लम्हा हंसी का बीत गया
इस तरह मैं दर्द-ए-दिल शायरी करना सीख गया
कुछ नामुराद दिल भी ऐसी जगह लगा जो मेरे दिल को भी साथ ले गयी
बस इस टूटे हुए बेख़ौफ़ शायर को कुछ प्यार का दर्द दे गयी
आज जब सभी हमें शायर शायर कहते हैं
वो कहते हैं कि हम और हमारी शायरी उनके दिल में रहते हैं
अरे हम तो बस शायर हैं महखानों में रहते हैं
आलम कुछ ऐसा है की कलम से कागज़ पर दर्द बयान कर दें तो लोग शायर श्यार कहते हैं
हम तो आज भी एक रूह हैं बस
जो उनके दिल में रहते हैं…
उनके दिल में रहते हैं….
-अनूप भंडारी
nice poem
Har pla loge khate hai ke tum apna nahi janta ho lekan me apna name kuy nahi jante hu app loge ae reusr hai ke mera name pata lage pls
Zindgi zaqm saanse dard ban gai ab tau..jeene ki hr arzu khatm ho chali ab tau….