मैं और मेरी तन्हाई बैठे थे आज…
और हो रही थी मेरे प्यार की बात…
तन्हाई ने कहा कैसा प्यार है तेरा…
जो आज तक है उसने मुंह फेरा…
मैं था चुप और इस से तन्हाई थी हैरान…
मैं था शांत और इस से तन्हाई थी परेशान…
तन्हाई ने कहा क्या मिला तुझे प्यार में…
इस से अच्छा बैठा होता कही ऐशो बहारो में…
तन्हाई बोली क्या है अब पास में तेरे…
छा गए हैं बादल और गमों के अँधेरे…
मैं था चुप और इस से तन्हाई थी हैरान…
मैं था शांत और इस से तन्हाई थी परेशान…
तन्हाई ने कहा की प्यार में बहुत फरेब है धोखा है…
जा कुछ और कर प्यार के अलावा तुझे क्या किसी ने रोका है…
तन्हाई ने कहा क्या है ये प्यार का अजूबा…
जा, यार के वापिस आने की उम्मीद में मत रह डूबा…
मैं था चुप और इस से तन्हाई थी हैरान…
मैं था शांत और इस से तन्हाई थी परेशान…
तन्हाई ने कहा तेरा बिछड़ा यार नहीं आएगा…
मुझे लगता है तू कभी अपना प्यार नहीं पायेगा…
तन्हाई बोली अरे मूर्ख कुछ तो बोल…
मई इतनी देर से बक बक कर रही हूँ तू भी तो अपना मुंह खोल…
मैंने कहा बता कहाँ लिखा है की वो नहीं आएगी…
और अपने साथ प्यार की सौगात नहीं लाएगी…
कौन सी ऐसी दिवार है हमारे बीच जो खड़ी हो सकें…
ऐसी कोई दिवार नहीं बनी जिसकी नीव डलते ही हम उसे तोड़ न सकें…
कौन कहता है की उसका प्यार हो गया है पूरा…
क्यूंकि “प्यार” तो खुद शब्द ही ऐसा है जिसका पहला अक्षर है अधूरा…
कौन कहता है की प्यार सिर्फ दो जिस्मो का मिलान है…
माना वो मुझसे दूर है पर फिर भी मैं उसका और वो मेरी हमदम है…
अब बोल रहा था मई और चुप थी तन्हाई….
तभी सामने आई मेरी जान और भाग गयी तन्हाई…
-अनूप भंडारी
Veri nice poem bahot khubsurat hai is ki har line
Well Written 🙂
मुझसे दूर है तू पर तेरी याद साथ है
कुछ कही कुछ अनकही बातें आज भी मुझे याद है
कुछ इस कदर दूर चले गए हो तुम
जैसे कुम्भ के मेले में हो गए हो गुम
मेरी कोशिश तुझे पाने की है और वही पहले भी थी
मैं आज भी वहीँ खड़ा हूँ जहाँ तू छोड़ गयी थी
वक्त बीत रहा है हर लम्हा हर पल
आज भी दर्द है वहाँ जहा तूने अखियों से किया था घायल
आज भी तेरे घर के सामने से गुज़रते हुए तेरे दीदार को तरसता रहता हूँ
पर अब वहां नहीं रहती तू मैं पागल ये भी भूल बैठा हूँ
जहां भी है तू खुश रहे तेरा अच्छे से दिल लगे
हम मर भी जाएँ तो भगवान करे तुझे खबर भी न लगे
तेरे दिखाए हुए सपनो को मैं आज भी अकेले जी लेता हूँ
तेरे दिए हुए ज़ख्मों को कुरेद के फिर से सी लेता हूँ
कभी न कभी तो तुम मुझे याद करोगे
हमसे मिलना है ये तुम खुद से बात करोगे
तुम जब कभी मुझसे मिलने आओगे
तब तुम हमको शायद वहाँ नहीं पाओगे
तब तुम लोगों से पूछोगे यहां अन्नू रहता था
वो कहेंगे वही जो सारा दिन उस सामने वाले घर की तरफ देखता रहता था
तब तुम्हें भी होश आएगा की अब वो दुनिया से चला गया
आजतक जो आँखें कभी नम ना हुई थी उनमें से पानी बहता गया
तब तुम्हें पता लगेगा की उसने इंतज़ार तो बहुत किया
पर वो भी तो इंसान है जो तेरी याद में ही जिया और तेरी याद में ही मर गया
Your poem has been published!
दर्द – ए – दिल ब्यान करते कैसे
तुम आँखों के सामने थे आँखे बंद करते कैसे
तुम कहते हो की किसी और को क्यों नहीं अपना लेते
तुम ही बताओ अपने दिल का आशियाना किसी और के नाम करें कैसे
तुम चले गए हमे मझधार में छोड़ के
कभी सोचा तुमसे इतना प्यार करने वाला तुम बिन जिएगा कैसे
तुम्हारे होंठो से “अन्नू” सुनना आदत थी जिसकी
वो तुमसे बात किए बिना रहेगा कैसे
मुझे आज भी याद है तुम्हारा वो रातो को रो रो कर हद्द कर देना और कहना
तुम्हारा तो पता नहीं “अन्नू” पर तुम्हारे बिना मैं रहूंगी कैसे
रो दिए होते हम ऎ मेरे हमदम पर रोके रखा खुद को
क्योंकि अगर मैं भी रो देता तो तुम्हें चुप कराता कैसे
“अन्नू” तुम्हारा था, तुम्हारा है और तुम्हारा ही रहेगा
मैं किसी और को अपना लूंगा ये तुमने सोचा भी कैसे
आज भी मैं तन्हाई को मात दे सकता हूँ
बस तुम साथ दो और देखो फिर मैं बुलंदियों को छूता लेता हूँ
तुम्हारे बिन तो अब जीना दुश्वार हो गया है
पर तुमसे आखिरी बार मिले बिना मरू भी तो कैसे
मुझे आज भी याद है तुम्हारा वो वादा
“अन्नू” अगले जनम में पक्का तुम्हारी हो के रहूंगी है ये वादा
माफ़ कर देना इस जनम के लिए
अरे पघली माफ़ी तो होती है परायों के लिए
या फिर जो तुमसे नाराज़ हो और मैं तुमसे नाराज़ हो जाऊँ
या मैं तुमसे पराया हूँ ये तुमने सोचा भी कैसे
Wah sir bs wah
Thanks sir 🙂
Sach me bohot badhiya.
Aap aisi hi kavitaye likhte rahiye.
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