जब बरसात आयी थी मेरे दर पे
मैं प्यासा था !!
आंधी आकर गुजर गयी
मैं ठहरा था
जिसने नींदे चुराई मेरी
वो एक हसीन चेहरा था !
रोजदराज की कश्मकश से
मैं वाक़िफ़ था
प्यार मैं डूबा था
मैं तेरा आशिक़ था !
ये पल पल का खेल हैं
मुझे तब पता चला
हक़ीक़त सामने थी ये मुझे
अब पता चला !
तब मैं प्यासा था
प्यार पाने के लिए
अब मैं प्यासा हूँ
मंजिल पाने के लिए !
-निषाद
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