एक जिस्म दो जान
वो मुझमें इस कदर ज़िंदा है
कि अब मरने का भी डर नहीं है मुझको,
कि इस एक जिस्म में दो जान कैसे रहेंगे,
अब तो चाहत है मर जाने दो मुझको.
दिल में बसाकर रखा है उसे,
डरता हूँ कि मेरी कोई टीस ना चुभे उसको,
इस एक जिस्म में दो जान कैसे रहेंगी,
अब तो चाहत है मरजाने दो मुझको
मैने अपनी हर चाहत में उसे ज़िंदा रखा है,
मेरे छू लेने से कहीं वो मैला ना हो जाये,
अब तो इस जिस्म को छूने में भी डर लगता है,
इस एक जिस्म में दो जान कैसे रहेंगी,
अब तो चाहत है मरजाने दो मुझको
-योगेश कुमार यदुवंशी
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